पप्पा को भोपाल में खबर मिली, कि नाना बहुत बीमार हैं। पप्पा तुरंत ग्वालियर भागे। नाना के घर पहुँचे तो उन्हें काफी गंभीर अवस्था में पाया। एक मित्र को डॉक्टर बुलाने के लिए कहा। वो कुछ ही देर में मेडिकल कॉलेज के किसी प्रोफेसर को साथ ले कर आया। उन्होंने जाँच कर तुरंत अस्पताल में भरती करने की सलाह दी। फीस ले कर जब वे डॉक्टर घर से बाहर जाने लगे, तो अचानक उनकी नजर दीवार पर लगी खूँटी पर लटके स्टेथसस्कोप पर पड़ी। “ये किसका है?” उन्होने पूछा। “पेशंट का।” “पॅशंट डॉक्टर है? अजीब आदमी हो। तुम्हें पहले ही बताना चाहिए था।’’ ये कहते हुए उन्होने जेब से ली हुई फीस निकाल कर वापस कर दी। नाना जिस अवस्था में थे उसी अवस्था में उन्हें उठा कर पप्पा अस्पताल ले गये। नाना को मेडिकल कॉलेज के ही स्टुडेंट वॉर्ड में भरती किया गया। उनकी बीमारी का नाम पप्पा को ठीक से याद नहीं, लेकिन ह्रदय से संबंधित मर्ज था। दिन भर पप्पा उनके साथ रहे। नाना की हालत काफी खराब थी लेकिन वे थोड़ा बहुत बोल पा रहे थे। वे बोले ‘‘ यदि शालू की शादी भी देख पाता तो अच्छा होता। मुझे तेरी तो बिल्कुल चिंता नहीं। तू अपना खयाल खुद रख लेगा, इसका मुझे विश्वास है।” पप्पा के साथ उनके एक मौसरे भाई सुरेन्द्र भी थे। रात काफी हो गई थी। पप्पा बहुत थक गये थे। सुरेन्द्र बोले “कुछ देर तू ठीक से सो ले, मैं बैठता हुँ। थोड़ी देर में तुझे उठा दूँगा।” पप्पा वहीं कुर्सी पर सो गये। कुछ ही देर में उन्हें लगा, जैसे कोई उन्हें झकझोर के उठा रहा हो। हड़बड़ा के उठे तो देखा सुरेन्द्र भी गहरी नींद में सो रहे थे। नाना की तरफ देखा, तो वे भी शांत सोते हुए लगे। पप्पा ने उनका हाथ स्पर्श किया, तो बदन अब भी गरम था। नाना को गये बस कुछ ही क्षण हुए थे। पप्पा को उन पंद्रह मिनिटों की नींद का आज तक अफसोस है। वे अब भी सुरेन्द्र काका से इस बात पर रुष्ट हैं, कि वे भी सो गये। वे आज भी इस बात पर दुख प्रकट करते हैं कि उन्हें नींद आ गई। जाने अंत समय में नाना को क्या लग रहा होगा। उन्होंने कुछ माँगा होगा क्या? उन्हें कुछ कहना होगा क्या? ये सवाल सालों पप्पा को परेशान करते रहे। नाना की सारी संपत्ती, जमीन, जायदाद, अंत समय में कुछ भी उनके खुद के भी काम नहीं आया। उनका अस्पताल का सारा खर्चा पप्पा ने ही किया। उनकी पत्नी से उसके बाद पप्पा ने कोई संबंध नहीं रखा। बहुत सालों बाद जब वे बहुत बूढ़ी हो गई थीं, और बीमार भी थीं,उनका एक पत्र आया था। उन्होने लिखा था, कि नाना के उत्तराधिकारी होने के कारण सब कुछ जो उनके पास है वह सब पप्पा का ही है। तो वे आएं और अपनी जायदाद सम्हालें। पप्पा ने उन्हें एक पोस्ट कार्ड पर लिख भेजा । ‘जब जीते जी मेरे पिता ने खुद मुझे कुछ दिया नहीं, तो अब उनकी मृत्यु के बाद मुझे उनका कुछ भी नहीं चाहिए। मैने आपको कभी अपनी माँ माना नहीं, ना ही कभी आपको अपनी जिम्मेदारी समझा। अब मैं नैतिक रूप से भी आपकी किसी वस्तु पर अपना हक नहीं मानता।' 'अब तक जिन लोगों ने आपकी देखभाल की है, आप उन्हें ही अपना उत्तराधिकारी बना दीजिए।' बाकी अगली बार...
Aaj ke jamaneme aise swabhimani log milna namumkin lagta hai. He was really great.
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