कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबां होती है
कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है
ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है
वो न आये तो सताती है ख़लिश सी दिल को
वो जो आये तो ख़लिश और जवाँ होती है
(ख़लिश = चुभन, वेदना)
रूह को शाद करे, दिल को जो पुरनूर करे
हर नज़ारे में ये तनवीर कहाँ होती है
(शाद = प्रसन्न), (पुरनूर = प्रकाशमान), (तनवीर = रौशनी)
ज़ब्त-ए-सैलाब-ए-मुहब्बत को कहाँ तक रोकें
दिल में जो बात हो आँखों से अयाँ होती है
(ज़ब्त-ए-सैलाब-ए-मुहब्बत = मुहब्बत की बाढ़ को रोकने के लिए की गई कोशिश), (अयाँ = प्रकट)
ज़िन्दग़ी एक सुलगती-सी चिता है ‘साहिर’
शोला बनती है न ये बुझ के धुआँ होती है
-साहिर होशियारपुरी
Woow… too good. Bur post your video version
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Kafi intersting….Hai
Aapka prayas kafi accha hai
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