आज पेश कर रही हूँ फिल्म दस्तक का गीत
हम हैं मता ए कूचा ओ बाज़ार की तरह
हम हैं मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार की तरह
उठती है हर निगाह ख़रीदार की तरह
(मता= वस्तु , कूचा-ओ- बाज़ार= गली और बाज़ार)
वो तो कहीं है और मगर दिल के आस-पास
फिरती है कोई शय निगह-ए-यार की तरह
(शय= चीज़)
‘मजरूह’ लिख रहे हैं वो अहल-ए-वफ़ा का नाम
हम भी खड़े हुए हैं गुनहगार की तरह।
(अहल ए वफा= वफादार लोग)
मजरूह सुलतानपुरी
और अब ये गीत देख भी लीजिए।
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