खोल दो दरवाज़े भीतर थोड़ी हवा तो आए।
माना जो घर तुम्हारा है, बेहद हसीन है
औरों से ज़्यादा बेहतर है इसका यकीन है
लेकिन ना जाने क्यों ये कुछ सोया सा लगता है
सब कुछ है मगर कुछ कहीं खोया सा लगता है।
लेने लगेंगे साँस परदे थोड़ी हवा तो आए।
खोल दो दरवाज़े भीतर थोड़ी हवा तो आए।
माना कि घर का होना ही किस्मत की बात है
लेकिन बाहर देखो तो पूनम की रात है।
माना कि सर पे छत बड़ी ज़रूरी चीज़ है।
लेकिन ये छत तुम्हारे और आसमान के बीच है।
बिखरेगी खुद ही चांदनी झरोखा नज़र तो आए।
खोल दो दरवाज़े दिल के थोड़ी हवा तो आए।
Wonderful.
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Waa khup chan
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बहोत सुंदर कविता !!
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बढिया
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