मेरी सहेलियां ही बेहतर है तुमसे ।
अच्छी लगती है बातें तुम्हारी
एक अलग दिशा एक नज़रिया नया ।
लेकिन सुन लेते हो तुम न जाने क्या
उन लफ़्ज़ों के बीच, कुछ है ही नहीं जहां
ये कसरत करते रहना पड़ता है
तुम्हारे साथ मुझे हमेशा
कि कहीं तुम कोई मतलब ना निकाल लो
मेरी बातों, हँसी या स्पर्श का ।
जो तुम्हें लगता है सिग्नल
वो है मेरा स्वाभाविक स्वभाव।
और उसके बाद आने वाली
कटुता और मनमुटाव
छोड़ जाते हैं दिल पर गहरे घाव।
दोस्ती भी रखूं बनाएं
और कोई गलतफहमी भी ना होने पाए
इस संतुलन को साधने में
खो जाती है मेरी सहजता ।
और इसीलिए
मुझे लगती है बेहतर
तुमसे मेरी सहेलियां।
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बहुत ही अच्छा ।
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