मैंने कब कहा मुझे सहर कर
मेरी रौशनी हो जहान में
शाहीन जो हैं उड़ा करें
मेरा दिल नहीं है उड़ान में
लगे झूमने सुन महफिलें
वो क़शिश नहीं मेरी तान में
मुझे बहुत कुछ की नहीं हवस
है वही बहुत जो है हाथ में
मुझे शोर ओ शोहरत से उज्र है
मैं खुश हूँ ख़ल्वत गाह में
मैं बनूँ शजर कोई बैठ ले
दम भर को मेरी पनाह में
मैं तलहटी की घाँस हूँ
जो बहर उठे एक फुहार में
बेवजह खुशी की जुस्तजू
क्या बहुत है तेरे खयाल में
बढिया।
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