ये जो मेरे दो लड़के हैं
कौरव पांडव से बढ़ के हैं ।
इनको अच्छा लगता चिल्लाना
लड़ने का यह ढूँढे बहाना।
लाते-घूँसे चीख पुकार
फेका-फेकी मारा मार।
मुश्किल है इनको समझाना
घर लगता है पागल खाना।
राम लक्ष्मण होंगे महान
यहां तो भारत-पाकिस्तान।
लेकिन अद्भुत इन का खेल
इस पल झगड़ा उस पल मेल।
एक दूजे की चीजें चुराएँ
आधी चॉकलेट बाँट के खाएं।
ऐसा इस झगड़े का रूप
अभी थी बारिश, अब है धूप।
एक कहीं जो बाहर जाए
दूजे को फिर घर ना भाए।
बस कुछ सालों की है बात
कितने दिन का है ये साथ।
जाने फिर किस दिशा उड़ेंगे
तब इनकी रस्ते कहां जुड़ेंगे।
अपनी-अपनी राह चलेंगे
क्या तब ये दिन याद करेंगे?
स्वाती
मार्च 2001
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Good one Swati . Keep them
Coming
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Thank you
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Khup chan
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Superb Swati!
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khup chhan!
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वाह स्वाति वाह बहुत सुंदर कविता।
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