ये बातें कैसे फैलीं
पर्वतों की तलहटी में
हरी घास की तरह...
देख के वर्षा के बादल
मन मोर तो मेरा नाचा था ।
उन बूंदों में पहली बरखा की
सिर्फ मेरा मन भीगा था ।
मिट्टी की सौंधी खुशबू ने
बस मुझको ही बौराया था ।
सात रंग का इंद्रधनुष वो
कहाँ किसे दिखलाया था ।
धुली-धुली से नर्म धूप में
मेरा मन अलसाया था ।
फिर सब को कैसे भनक लगी
यह खबरें कैसे कहाँ उगीं?
यह बातें कैसे फैलीं
पर्वतों की तलहटी में
हरी घास की तरह...
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