बहुत खूबसूरत हैं ये पहाड़
उनकी धीर गंभीरता,गूढ़ता
मानो अनादि काल से
जाने कितने रहस्य छिपाए
अपने भीतर, स्थिर खड़े
देख रहे हैं समय का प्रवाह।
लेकिन उनसे भी अद्भुत लगता है
इन पर्वत श्रेणियों के माथे पर
खड़ा वो अकेला वृक्ष।
वो बूढ़ा बरगद का पेड़
जिसकी सहस्त्र भुजाओं के
घेरे में एक ब्रह्माण्ड बसता है।
गर्मियों की झुलसती धूप से
घबरा कर छोटी मोटी झाड़ियांँ
और घाँस हिम्मत हार कर
वादा करती हैं आने का
अगली बरसात के साथ,
और लेती हैं विदा पहाड़ों से
ये तब भी हिम्मत नहीं हारता
डटा रहता है अकेला
ना जाने कितने जीव जंतु,
पशु पक्षियों की अनगिनत
पीढ़ियों को आसरा देता
ये बरगद पहाड़ों से भी अधिक
भव्य और आश्वासक लगता है।
चिलचिलाती, झुलसाती धूप में
पीले मृतप्राय पड़े पहाड़ों पर
हरा परचम लहराता
ये अकेला वृक्ष जीवन को
जीवित रखता सा लगता है।
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