बचपन में अक्सर बताती थीं
नानीयाँ और दादीयाँ
कि भूत पिशाचों का वास होता है
पीपल के पेड़ों में।
बचने का बस एक ही उपाय है
जब भी गुजरना पड़े
पीपल के नीचे से तो
नजर रहे नीची और
हनुमान चालीसा जपते रहो।
लेकिन मैं हमेशा जय जय जय
हनुमान गुसाईं कहते कहते
धीरे से एक आँख खोल कर
देख ही लेती थी ऊपर।
भूत तो कभी नहीं दिखे
लेकिन पीपल की हरी पत्तियां
मानो खिलखिला कर हंस पड़ती।
हवा के एक हल्के झोंके से
खुश हो तालियाँ बजाने लगतीं।
भरी गर्मियों में भी पेड़ पर
वातावरण इतना खुशनुमा लगता
कि सारा डर भूल कर
मैं सोचती, कभी चुड़ैल
बनी तो इसी पीपल पर रहूंगी।
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बढिया
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