ऐ खुदा माफ कर उन्हें
वो नहीं जानते वो क्या कर रहे हैं।
सलीब पर कांटों का ताज पहने
राजाओं के राजा ने
आंखे उठा कर याचना की थी।
कितना दीन होना पड़ता है
बड़ा होने के लिए
कितना झुकना पड़ता है
ऊपर उठने के लिए।
सजा देने का तो दूर
माफ करने का अधिकार भी
मेरा नहीं…
कितनी हिम्मत
और कितनी ताकत चाहिए
ये कहने के लिए।
यहां, जेरूसलम में
एहसास होता है कि
जाओ मैनें तुम्हें माफ किया
कितना दंभ है इस वाक्य में!!
स्वाती
जेरूसलम / अक्टूबर २०१९
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