मेरा मैं था बहुत अकेला खोज रहा था तुझको। जो तू मिलता,दे देना था अपना मैं ही तुझको। बहुत ढूँढ जब तुझको पाया पाया तुझे अकेला ही। तू भी तुझसे भरा हुआ था मेरे लिए जगह ना थी। मैं भी तुझको रखूँ कहाँ कह मैं तो मैं से हूँ लबरेज़। मेरा मैं अब तुझे अकेला देख बड़ा हैरान सा है। और अकेले सोच रहा है काश तू मेरी सुन लेता। स्वाती
Really nice 👍
LikeLike
nice
LikeLike
बढ़िया।
LikeLike
बहुत खूब कहा है👌🏼😊
LikeLike
बहुत खूब कहा है।👌🏼😊
LikeLike
धन्यवाद!
LikeLike
Good one swati.
LikeLike
nicely written
LikeLike