जाने कैसा पिघल रहा दिल घुलता है क़तरा क़तरा वक़्त ए रुख़सत उलझ गया फिर अब भी समझे ना ख़तरा। सपनों को तो समझ नहीं है मदहोशी सा आलम है दीवारों पर धूप है लेकिन आंगन में चंदा उतरा। कितनी बातें कितने किस्से कहना सुनना बाकी है। लेकिन हर एक पल पर जैसे लगा हुआ मानो पहरा। जल्दी जल्दी जीने में जाने क्या पीछे छूट गया तिनका तिनका जोड़ लिया लेकिन सब कुछ बिखरा बिखरा। एक समुंदर सीने में हैं भीतर सब गीला गीला लेकिन आंखों की खुश्की में झांक रहा जैसे सहरा।
Wa
So meaningful and subtle
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धन्यवाद!
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Wah!
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धन्यवाद!
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😊
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