जब रुकना होगा सोचेंगे इंतजार में हैं अरमान बहुत। है अभी तो कश्ती लहरों पर है हम में अब भी जान बहुत। भंवरों से हम कब डरा किए उलझाता है इत्मीनान बहुत। तुम साहिल का नाम ना लो तट पर भी हैं तूफान बहुत। है कार-ए-जहाँ दराज़ अभी ठुकराए हैं फरमान बहुत। ना खुदा, नाखुदा कोई नहीं खुद काफी है इंसान बहुत।
I love your point of view. ….😊
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वाह बहुत ख़ूब।👍
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