कितने मज़े मज़े में कट रहीं हैं मेरी रातें चुगलियाँ सूरज की है और चाँद से है बाते बरसात बेतकल्लुफी से जम के बैठ गई है दहलीज़ पर बहार ठिठक गई है आते आते। अंधेरों की सोहबतों में तारों की कहानियाँ। गुजरे हुए लम्हों से मुख़्तसर सी मुलाकातें। पंछियों की बातें, गिलहरियों से गुफ्तगू यूँ भी हैं दोस्तों की हम महफिलें जमाते कुछ नज़र भी धुंधली है,आहट भी है मद्धम कुछ सहर ने भी कर दी है देर आते आते। स्वाती
अप्रतिम
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सुंदर ।👌
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बहुत ख़ूब 👌
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