बिल्ली विश्वविद्यालय (3)

सुबह उठते ही उसने पहले
पूँछ फुला कर मुझसे
लाड़ करवाया। 
खुश हो कर सारे घर का
दौड़ कर चक्कर लगाया। 
अलग अलग आसनों में
बदन तानते हुए फिर
खाने की तरफ मोर्चा घुमाया।

खाना खा कर 
जीभ चटकारते  हुए
बड़ी एकाग्रता से
उसने पहले अपने नाखूनों
की धार तेज़ की।

फिर  किसी सौंदर्य विशेषज्ञ
की कुशलता से
अपनी कंघी जैसी 
खुरदुरी जीभ से 
पूँछ से लेकर मूँछ तक 
शरीर का हर एक अवयव
बड़ी दक्षता से सँवारा।

फिर गमले की पीछे
ठंडी हरी छाँह में 
एक आरामदायक
कोना खोज कर 
लंबी तान दी।
अब वो तभी उठेगी
जब उसकी नींद खुलेगी।

बड़े आदर से उसका ये सारा
अनुष्ठान देखती मैं सोच रही हूँ
कि आखरी बार कब मैंने
खुद पर इस तरह
ध्यान दिया था?
अपने उस शरीर से
जिसके होने से मैं हूँ
इतना एकरूप हो कर, 
मानों मेरे सिवा दुनियाँ
में दुसरा कोई ना हो ,
इस तरह प्यार किया था?

              स्वाती

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