कभी ऐसा हुआ नहीं,कि
बीमार पड़ा घर में कोई
और बिल्ली ने आ कर
उसका हाल पूछा नहीं।
सिरहाने बैठ कर
बाकायदा परेशान
होती हैं बिल्लियाँ!
पर बिल्ली का प्रेम
छतरी सा है।
कड़ी धूप हो या
हो धूँआधार बारिश,
ज़रूरत हो,तो
छाते सा तन जाता है।
बचाता है,सहारा देता है।
लेकिन उन बेवकू़फों का
इलाज बिल्ली के पास नहीं
जो खुशगवार मौसम में भी
छाते की छाँव से बाहर
निकलना ना चाहें।
उसका प्रेम तो आज़ाद
करता है और आज़ाद
रहना भी जानता है।
वो कभी उलझन नहीं है
आपकी राह में।
ना बेड़ी हैं आप
उसके पाँव में।
अक्सर सोचती हूँ कि
रूमी से ले कर
जिब्रान तक सभी,
बिल्ली विश्वविद्यालय के
छात्र रहे हैं कभी ना कभी।
स्वाती
छत्रीची उपमा एकदम योग्य आणि मस्तच .
कविता तर छानच
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