जेरूसलम की बिल्ली

ये खंडहर किसी ज़माने में आलीशान महल था, जो फलां धर्म के अमुक राजा ने फलां सदी में अपनी फलां रानी के लिए बनवाया था। और फलां आक्रमणकारी ने अमुक सदी में फलाना वजह से इस बरबाद किया था। गाईड अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा था समझाने की, लेकिन उसकी किस्सागोई में वो मज़ा नहीं आ रहा था। तभी एक बिल्ली आलस देती पास आ कर बैठ गई। यहाँ कब से हो तुम, मैनें पूछा। यहीं उस दीवार की दरार में पैदा हुई थी, उसने कहा। ओ इस महान देश के महान खंडहरों की बिल्ली तुम ही बतलाओ क्या जानती हो इन प्राचीन इमारतों के बारे में। मेरे हाथों से पीठ रगड़ते हुए वो बोली बस ज़रा लाड़ करवाने का मन था। जो तुमसे हो सके तो ज़रा कान के पीछे खुजा दो, तो जा कर आराम से सो जाऊँ। जो तुम्हें इन मुर्दा कहानियों में मुझसे अधिक रस हो तो कह दो, काले, गोरे, भूरे हर तरह के सैलानी हैं यहाँ किसी दूसरे के पास चली जाऊँ। उसे सहलाते हुए मैंने भी पत्रकारों वाले अंदाज़ में पूछ ही लिया, "फिर भी, आपको क्या लगता है?" हाथ-पाँव,पीठ मरोडते हुए उसने खुद को ताना। वो जो वहाँ कमान दिख रही है न उसके नीचे आज एक मोटे चूहे का शिकार किया है। जम के पेट भरा है। और जो सामने वाला खंबा है न उसकी छाँव में बढ़िया नींद आती है। बस यही तो सबसे ज़रूरी बातें है। क्या फर्क पड़ता किसने कब क्या बनवाया और किसने क्यों तुड़वाया। बस इतना ही समझ में आता है हम बिल्ली लोग को कि नींद अच्छी आती है जो पेट भरा हो। स्वाती
वा
एकदम मस्त
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Beautiful
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