ये आज की सुबह थी या कल की शाम है
उठ के चाय पी लें या हमको अब सो जाना था।
आज खा चुके हैं या मान लें कि कल खाई थी
या फिर से खा लें वो दवा जिसको रोज खाना था।
कुछ ऐसी अजब कूद फांद कर रहा है समय
घड़ी भी हैरान है के ये अलार्म कब बजाना था।
कुछ यूँ उलझ रहा है सिलसिला रात दिन का
आज आ रहा है वो ख्वाब जिसे कल आना था।
समय की लहरों में यूँ खाते है गोते
जाग रहे हैं तब जब हमको सो जाना था
स्वाती
Good one as usual.
LikeLike