मेरे घर की हर चीज में
मेरा ही प्रतिबिम्ब दिखता है
कहता है मेरा बेटा!
सच भी है। इस घर की
हर छोटी बड़ी चीज में,
दीवार पर लटकी तस्वीर से लेकर
गमले में लगे मोगरे तक,
पूजा घर के भगवान से ले कर,
खिड़की पर टँगी कांच की घण्टियों तक,
मानो हर बात में मैं समाई हूँ।
आप किसी भी ओर
बस उँगली भर दिखाइये,
और मैं किसी चाबी की
गुुडिया की तरह
पटापट शुरू हो जाऊँगी ।
मैं आपको बता सकती हूँ
उस वस्तू की पूरी राम कहानी,
उसी तरह जैसे मेरी माँ बता सकती है
उस सौ साल पुराने पीतल के हंडे का
इतिहास जो उनकी सास ने
जाने कहाँ से खरीदा था और
शादी में दिया था उन्हें।
लेकिन फिर भी, जब भी कभी
सुबह-सबेरे, दिन भर के
झमेले शुरू करने से पहले,
मैं मेरे प्रिय टेराकोटा के कप मेंं,
(जिसे मैने एक हस्तकला प्रदर्शन से खरीदा था)
चाय ले कर, मैंने ही खुद
डिजाइन दे कर बनवाए हुए
सोफे पर बैठती हूँ, तो
अक्सर सोचती हूँ कि ये घर,
ये मेरा घर जिसकी
हर चीज़ में मैं बसती हूँ,
ये यहाँ से वहाँ तक फैला,
दुनियाभर से इक्कट्ठा की गई
खूबसूरत चीजों से सजा घर,
इसकी दीवारें
उस साढ़े तीन कमरों के
घर की दीवारों जितनी बेफिक्र
क्यों नहीं हो पातीं कभी…
कभी क्यों मुझे मेरा ये घर
मेरा मायका नहीं लगता।
Dil ko chhu lene waali kavita……Umda.👌👌
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Very very nice one.touching the reality.
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